15°C New York
November 21, 2024
सरकारी नौकरियों में SC/ST को पदोन्नति में आरक्षण मिलेगा या नहीं, शुक्रवार को होगा फैसला
India

सरकारी नौकरियों में SC/ST को पदोन्नति में आरक्षण मिलेगा या नहीं, शुक्रवार को होगा फैसला

Jan 29, 2022

सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण मिलेगा या नहीं इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को फैसला सुनाएगा. इस मामले में 26 अक्तूबर 2021 को जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने मामले में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) बलबीर सिंह और विभिन्न राज्यों के लिए उपस्थित अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. केंद्र ने पहले पीठ से कहा था कि यह जीवन का एक तथ्य है कि लगभग 75 वर्षों के बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया है.

वेणुगोपाल ने प्रस्तुत किया था कि एससी और एसटी से संबंधित लोगों के लिए समूह ए श्रेणी की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना अधिक कठिन है. समय आ गया है जब शीर्ष अदालत को रिक्तियों को भरने के लिए एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग(OBC) के लिए कुछ ठोस आधार देना चाहिए.

पीठ ने पहले कहा था कि वह अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण देने के मुद्दे पर अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगी और कहा कि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करने जा रहे हैं. सुनवाई के दौरान पदोन्नति में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से डेटा मांगा था, जिसमें दिखाया गया हो कि पदोन्नति में आरक्षण जारी रखने का निर्णय प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता को लेकर मात्रात्मक डेटा पर आधारित था.

EWS वर्ग के आरक्षण के पैमाने पर पुनर्विचार करेगी सरकार, कमेटी का किया गठन

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए 2006 में नागराज मामले में संविधान पीठ के फैसले के अनुसार प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता का पता लगाने के लिए उसने क्या अभ्यास किया? सार्वजनिक रोजगार में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि वह एक विवादास्पद मुद्दे पर फैसला करेगा कि आरक्षण अनुपात पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर होना चाहिए या नहीं.

अदालत ने कहा था कि हम जो सवाल पूछ रहे हैं वह यह है कि प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता का पता लगाने के लिए नागराज के बाद क्या अभ्यास किया गया है. यदि हम आरक्षण की पर्याप्तता का निर्धारण करने के लिए जनसंख्या से जाते हैं, तो इसकी बड़ी खामियां हो सकती हैं. केंद्र को इस पर विवेक लगाना चाहिए था, पर्याप्तता का क्या मतलब है.

अदालत ने पूछा कि आखिर इतने दिनों तक सरकारी नौकरियों में ये व्यवस्था क्यों लंबित रखी गई? कोर्ट ने पूछा था कि आपके पास इस बाबत क्या आंकड़े हैं? याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने इंदिरा साहनी मामले का हवाला दिया. उनकी दलील थी कि उस फैसले के बाद भी अब तक अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था सुचारू तौर पर नहीं हो पाई है.

केंद्र सरकार ने खत्म किया सरकारी जॉब में 4% का आरक्षण कोटा, जानिए- किस वर्ग को होगा नुकसान?

जस्टिस एलएन राव ने कहा था कि आरक्षण व्यवस्था को लेकर नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2006 में आया था. अब तक उस पर अमल के लिए सरकार ने क्या किया? अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उस फैसले के मुताबिक बदलाव की बात कही तो कोर्ट ने फिर टोका कि ये बदलाव तो 2017 में किए गए! 2006 से 2017 तक क्यों कुछ नहीं किया गया?

अटार्नी जनरल ने कहा था कि दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट के एक जजमेंट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ही स्टेटस को यानी यथास्थिति बहाल कर रखी थी. कोर्ट ने फिर पूछा हमने आरक्षण पर रोक लगाई तो आपने प्रमोशन पर कब रोक लगाई! AG ने कहा कि प्रमोशन तो रोस्टर आधारित था जिसमें DoPT के नियमों के तहत 15 फीसद से ज्यादा को तरक्की नहीं दी जा सकती. इस वजह से हजार से ज्यादा पदों पर नियमित और तरक्की से भर्ती नहीं हो पाई.

जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि डाटा के आधार पर हम टेस्ट केस के तौर पर परीक्षण करेंगे कि कैडर वार समुचित तौर पर इसे अमली जामा कैसे पहनाया जा सकता है.
ASG बलबीर सिंह ने कहा कि 1997 में DoPT ने एक ऑफिशियल मेमोरेंडम जारी कर वेकेंसी आधारित आरक्षण को पोस्ट आधारित आरक्षण में तब्दील कर दिया था. उस तरीके से पता चलता था कि खाली पदों पर भर्ती कैसे होगी. इस तरह गणितीय आधार पर 15 और साढ़े सात फीसदी के तर्ज पर पद भरे जा रहे थे.

पीठ ने कहा कि रोस्टर पदों की संख्या के आधार पर हों ये एक मानदंड हो सकता है,  लेकिन दुर्भाग्य से इसके भी आंकड़े नहीं हैं. हम तो ये जानना चाहते हैं कि आपने किस आधार पर रिजर्वेशन की व्यवस्था रखी है. उसे तथ्यपरक और तार्किक तौर पर हमें समझाएं.

AG ने कहा कि कई तरह के अदालती फैसलों में भी अंतर्विरोध है. सबसे पहले 1995 में आया फैसला जिसके बाद से हर साल ऊंचे पदों पर अनुसूचित जाति और जनजातियों के उम्मीदवार और दावेदारों की संख्या लगातार कम होती गई, जबकि निचले पदों पर श्रमिकों और कर्मचारियों के लिए संख्या बहुत रहती थी. इस पर कोर्ट ने कहा कि यही तो तय करना है कि प्रमोशन में आरक्षण अनुपातिक आधार पर हो या एक बार समुचित आधार पर और फिर सबके लिए बराबर.

कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण देना जारी रखेंगे, सुप्रीम कोर्ट ने किया सवाल

कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि इस बाबत उपलब्ध आंकड़ों के चार्ट तैयार करा कर कोर्ट को दें ताकि स्थिति साफ हो सके. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो देश भर में नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर मामलों की 5 अक्तूबर से अंतिम सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर राज्य के अपने अनूठे मुद्दे हैं, इसलिए राज्यवार मामलों की सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे राज्यों के लिए अनूठे मुद्दों की पहचान करें और दो हफ्ते के भीतर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करें.

दरअसल केंद्र और राज्यों ने पदोन्नति नीति में आरक्षण से संबंधित मामलों पर तत्काल सुनवाई की मांग की है. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले की वजह से ये लाखों पदों पर नियुक्तियां रुकी पड़ी हैं. हाईकोर्ट के परस्पर विरोधी आदेशों के कारण कई पद रिक्त पड़े हैं, इसलिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व और पिछड़ेपन को मापने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की आवश्यकता है.

राज्यों ने कहा है कि केंद्र सरकार के स्तर पर नियमित पदों के लिए पदोन्नति हुई थी, लेकिन देश भर में आरक्षित पदों पर पदोन्नति 2017 से अटकी हुई है. दरअसल जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच पदोन्नति में आरक्षण नीति को लेकर लगभग 133 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

‘डिफॉल्टर’ बनने से बचने के लिए Future Retail की डाली गई याचिका पर 31 जनवरी को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने साफ कर दिया है कि वो पिछले फैसले में पहले से तय किए गए मुद्दों को फिर से नहीं खोलेगी. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण नीति कैसे लागू हो ये बताने की जरूरत नहीं है. नागराज फैसले में निर्देश पारित किया गया है कि प्रत्येक राज्य को अंतिम रूप देना है कि वे इसे कैसे लागू करेंगे. वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने SC को बताया था कि महाराष्ट्र सरकार ने अब “प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता” पर निर्णय लेने के लिए एक समिति का गठन किया है. सवाल यह है कि यह पहले क्यों नहीं किया गया.

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था इस मामले में होईकोर्ट भी हस्तक्षेप कर रहे हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट को जल्द इस मामले का निपटारा करना चाहिए. प्रोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिसमें बहुत सी याचिकाएं एक साथ सुनवाई के लिए संलग्न हैं. एम नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि सरकार को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़ें जुटाने होंगे.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *